क्रिया योग सजग कर्म है | यह अपनी वास्तविकता पहचानने का एवं आत्म-ज्ञान प्राप्ति का मार्ग है | बाबाजी के क्रिया योग में न केवल योग के सभी अभ्यास जैसे आसन, प्राणायाम, ध्यान तथा मंत्र में पूर्ण "सजगता" सम्मिलित है बल्कि अपने वचन, विचार, स्वप्न और इच्छाओं के प्रति सतत सजगता भी सन्निहित है | इस साधना में हमें अतिचैतन्य बनाने की अपार क्षमता है | बस अपने शारीर मन एवं समग्र चेतना से अपनी आत्मा की पूर्ण शुद्धि की कामना से जुड़ने की तत्परता चाहिए | बाबाजी का क्रिया योग आत्म-साक्षात्कार एवं अपने पांचों शारीर (भौतिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक ) के कायाकल्प हेतू 144 क्रियाओं का संकलन है |
क्रिया हठ योग का प्रथम लक्ष्य है शरीर एवं मन की गहन विश्राम की स्थिति | आसन शरीर को आधि-व्याधि से मुक्त करते हैं | विविध आसनों से शरीर हल्का, लचीला एवं स्फूर्तिवान बनता है | इन 18 आसनों का अभ्यास मेरुदण्ड में स्थित ऊर्जा चक्रों, कुण्डलिनी शक्ति एवं चेतना को जाग्रत करता है |
क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम स्नायुतंत्र के प्रमुख सूक्ष्म भागों पर सीधा प्रभाव डालता है | प्राणायाम का प्रथम लक्ष्य है स्नायुतंत्र को परिशुद्ध कर प्राणशक्ति को सभी चक्रों में अनवरुद्ध प्रवाहित करना | अंतिम लक्ष्य है सुषुम्ना नाङी को जाग्रत कर कुण्डलिनी को उसमे ऊर्ध्वगामी करना |
बाबाजी के क्रिया ध्यान योग की मांग है अपनी अन्तःचेतना में उपलब्ध यथार्थ बोध को अपनी जाग्रत अवस्था में लाकर उसे और भी प्रभावकारी बनाना | हमारे जीवन का स्वरुप इस बात पर निर्भर करता है की हमारी चेतना किस स्तर ( सोपान) पर है | इसीलिए ध्यान के द्वारा विचारों को रोक कर शून्य की अवस्था में डूबने की जगह, ध्यान की हमारी क्रियाएँ अंतर-धारणा जैसी मानसिक शक्तियों को सुदृढ़ कर उन्हें जीवनोपयोगी सहजज्ञान एवं अंतःप्रेरणा के स्त्रोत में विकसित करती है | ध्यान की इन क्रियाओं से एकाग्रता की क्षमता विकसित होकर हमारी समग्र चेतना को आत्मा की ओर उन्मुख करती है |
क्रिया मंत्र योग सत्व गुण को जाग्रत करने वाले सशक्त बीज मन्त्रों का मौन जप है | यह क्रिया साधक कि चेतना को इश्वरोंन्मुख कर उसे दैवी शक्ति एवं ईश्वर कृपा के प्रवाह से जोड़ती है |
क्रिया हठ योग का प्रथम लक्ष्य है शरीर एवं मन की गहन विश्राम की स्थिति | आसन शरीर को आधि-व्याधि से मुक्त करते हैं | विविध आसनों से शरीर हल्का, लचीला एवं स्फूर्तिवान बनता है | इन 18 आसनों का अभ्यास मेरुदण्ड में स्थित ऊर्जा चक्रों, कुण्डलिनी शक्ति एवं चेतना को जाग्रत करता है |
क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम स्नायुतंत्र के प्रमुख सूक्ष्म भागों पर सीधा प्रभाव डालता है | प्राणायाम का प्रथम लक्ष्य है स्नायुतंत्र को परिशुद्ध कर प्राणशक्ति को सभी चक्रों में अनवरुद्ध प्रवाहित करना | अंतिम लक्ष्य है सुषुम्ना नाङी को जाग्रत कर कुण्डलिनी को उसमे ऊर्ध्वगामी करना |
बाबाजी के क्रिया ध्यान योग की मांग है अपनी अन्तःचेतना में उपलब्ध यथार्थ बोध को अपनी जाग्रत अवस्था में लाकर उसे और भी प्रभावकारी बनाना | हमारे जीवन का स्वरुप इस बात पर निर्भर करता है की हमारी चेतना किस स्तर ( सोपान) पर है | इसीलिए ध्यान के द्वारा विचारों को रोक कर शून्य की अवस्था में डूबने की जगह, ध्यान की हमारी क्रियाएँ अंतर-धारणा जैसी मानसिक शक्तियों को सुदृढ़ कर उन्हें जीवनोपयोगी सहजज्ञान एवं अंतःप्रेरणा के स्त्रोत में विकसित करती है | ध्यान की इन क्रियाओं से एकाग्रता की क्षमता विकसित होकर हमारी समग्र चेतना को आत्मा की ओर उन्मुख करती है |
क्रिया मंत्र योग सत्व गुण को जाग्रत करने वाले सशक्त बीज मन्त्रों का मौन जप है | यह क्रिया साधक कि चेतना को इश्वरोंन्मुख कर उसे दैवी शक्ति एवं ईश्वर कृपा के प्रवाह से जोड़ती है |
Very powerful kriya yog
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