बाबाजी का क्रिया योग दीक्षा शिविर में क्रमशः किया जाता है | व्यक्ति के सर्वांगीन उन्नति के लिये क्रिया योग के विभिन्न तकनीकों की शिक्षा क्रमबद्ध तरीके से दी जाती है | कई प्रकार के इन तकनीकों के निष्ठापूर्वक अभ्यास से साधक में एक अमूल परिवर्तन आता है | इनसे मिलने वाले अनेक लाभों में हैं रोग मुक्ति और स्फूर्ति, भावनात्मक संतुलन, मानसिक शांति, तीक्ष्ण एकाग्रता, अन्तःप्रेरणा, ज्ञान एवं आध्यात्मिक आत्म-साक्षात्कार | इन क्रियाओं के दैनिक अभ्यास से अपार बल, स्थैर्य और शांति की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही साधक उद्द्यमी एवं भविष्यद्रष्टा भी बनता है | यह विच्छिन्नता और जड़ता दोनों ही को दूर कर मन और शरीर में संतुलन एवं शांति लाता है | शरीर, मन और आत्मा का कायाकल्प करने के इच्छुक सभी के लिये ये उपयुक्त है | यह उन सब के लिये है जो अपनी आत्मा से अंतरंग होने के लिये प्रयत्नशील हैं | और यह उन सभी लोगों के लिये भी है जो येसुमसीह के बताये गए “स्वर्ग के वैभव” को पृथ्वी पर ही पा लेने को तत्पर हैं | यह उन सब के लिये है जो अपने जीवन को हर्षोउल्लास से भरना चाहते हैं और उसे अपने सम्बन्ध में आने वालों के साथ में बाँटना चाहते हैं | ये सबों के लिये सामान प्रभावशाली है चाहे वो स्त्री हो या पुरुष, चाहे बालक हों या वृद्ध, कोई पूर्वानुभव हो या ना हो | इसके अभ्यास के लिये जाति, धर्मं और भाषा का कोई भेद नहीं है |
क्रिया योग के अनुसार जीवन अपने अनुकूल समय पर एक साथ घटती हुई अनेकों घटनाओं की श्रृंखला है | इनमे से कोई घटना सुखद होती है और कोई दुखद | क्रिया योग में सिखाए गए आसन, प्राणायाम, मंत्र और ध्यान के अभ्यास से साधक की ऊर्जा और सजगता प्रखर होती हैं और इसी कारण साधक हरेक परिस्थिति में कुछ सीखने का और विकास का अवसर देखता है |
क्रिया योग भौतिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक प्रत्येक स्तर पर की गयी साधना है जो साधक को उसके सच्चे स्वरुप की याद दिलाती है | वह रूप जो शरीर और मन की गतिविधियों से अपने अहं की पहचान छोड़कर शुद्ध शाक्षी भाव में स्थित होता है | इस साधना से व्यक्ति अपना जीवन अपने इच्छानुसार बनाता है | आत्मनियंत्रण के बढ़ने के साथ साथ कर्ता भाव को त्याग कर जीवन के हर रूप का आनंद लेता है | क्रिया योग से ईश्वर का निरंतर सान्निध्य पाकर साधक आस्था, विनय एवं भक्ति से परिपूर्ण होता है | वह ईश्वर को ही भजता है, ईश्वर का ध्यान करता है, ईश्वर से किसी प्रिय सखा की तरह बातंय करता है और ईश्वर के वचन भी सुन पाता है |
क्रिया योग से मानसिक स्पष्टता और एकनिष्ठता पाकर साधक आसानी से न सिर्फ अपने लिये बल्कि दूसरों के लिये भी सही और श्रेयस मार्ग पा जाता है | शुद्ध दृष्टि और प्रखर बुद्धि से युक्त यह साधक अपनी चेतना का विस्तार कर हर तरह के कार्य अनायास ही संपन्न कर पाता है | अपनी उपलब्धियों का श्रेय वह स्वयं नहीं लेता और सबकुछ करने वाले महान कर्ता, ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहता है |
क्रिया योग के अनुसार जीवन अपने अनुकूल समय पर एक साथ घटती हुई अनेकों घटनाओं की श्रृंखला है | इनमे से कोई घटना सुखद होती है और कोई दुखद | क्रिया योग में सिखाए गए आसन, प्राणायाम, मंत्र और ध्यान के अभ्यास से साधक की ऊर्जा और सजगता प्रखर होती हैं और इसी कारण साधक हरेक परिस्थिति में कुछ सीखने का और विकास का अवसर देखता है |
क्रिया योग भौतिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक प्रत्येक स्तर पर की गयी साधना है जो साधक को उसके सच्चे स्वरुप की याद दिलाती है | वह रूप जो शरीर और मन की गतिविधियों से अपने अहं की पहचान छोड़कर शुद्ध शाक्षी भाव में स्थित होता है | इस साधना से व्यक्ति अपना जीवन अपने इच्छानुसार बनाता है | आत्मनियंत्रण के बढ़ने के साथ साथ कर्ता भाव को त्याग कर जीवन के हर रूप का आनंद लेता है | क्रिया योग से ईश्वर का निरंतर सान्निध्य पाकर साधक आस्था, विनय एवं भक्ति से परिपूर्ण होता है | वह ईश्वर को ही भजता है, ईश्वर का ध्यान करता है, ईश्वर से किसी प्रिय सखा की तरह बातंय करता है और ईश्वर के वचन भी सुन पाता है |
क्रिया योग से मानसिक स्पष्टता और एकनिष्ठता पाकर साधक आसानी से न सिर्फ अपने लिये बल्कि दूसरों के लिये भी सही और श्रेयस मार्ग पा जाता है | शुद्ध दृष्टि और प्रखर बुद्धि से युक्त यह साधक अपनी चेतना का विस्तार कर हर तरह के कार्य अनायास ही संपन्न कर पाता है | अपनी उपलब्धियों का श्रेय वह स्वयं नहीं लेता और सबकुछ करने वाले महान कर्ता, ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहता है |
क्रिया योग के तकनीक हमारी अन्तःप्रज्ञा और रोग निवारण की शक्ति को सुदृढ़ करते हैं | हमारी प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत कर यह चुस्ती, फूर्ती, उत्तम स्वास्थ्य, सबल स्नायु तंत्र और शक्ति के साथ हमें सहज और शांत व्यक्तित्व प्रदान करता है |
शरीर और मन और आत्मा के बीच तारतम्य स्थापित कर क्रिया योग हमारी कुण्डलिनी में निहित दिव्य चेतना एवं शक्ति को जाग्रत करता है | हम कैसा जीवन जीते हैं वह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी चेतना किस स्तर तक पहुँची है | अस्तित्व के नए आयामों के द्वार खोलने के लिये अपनी आध्यात्मिक चेतना का विकास करना अत्यंत आवश्यक है | इसके बाद ही हम उस चेतना को अपने जीवन के गतिविधियों से जोड़ कर अपने इर्द-गिर्द सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं |
‼::जय गुरु जय::‼
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