बाबाजी का क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है | प्राचीन सिद्ध परम्परा के 18 सिद्धों की शिक्षा का संश्लेषण कर भारत के एक महान विभूति बाबाजी नागराज ने इस प्रणाली को पुनर्जीवित किया | इसमें योग के विभिन्न क्रियाओं को 5 भागों में बांटा गया है |
क्रिया हठ योग: इसमें विश्राम के आसन, बंध और मुद्रा सम्मिलित हैं | इनसे नाङी एवं चक्र जागरण के साथ-साथ उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है | बाबाजी ने 18 आसनों की एक श्रृंखला तैयार की है जिन्हें दो आसन के युगल में करना सिखाया जाता है | अपने शारीर की देख-भाल मात्र शारीर के लिए नहीं बल्कि इसे ईश्वर वाहन अथवा मंदिर समझ कर किया जाता है |
क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम: यह व्यक्ति की सुप्त चेतना एवं शक्ति को जगा कर उसे मेरुदंड के मूल से शीर्ष तक स्थित 7 प्रमुख चक्रों में प्रवाहित करने की शक्तिशाली स्व्शन क्रिया है | यह 7 चक्रों से सम्बद्ध क्षमताओं को जागृत कर अस्तित्व के पांचों कोषों को शक्तिपुंज में परिणत करते है |
क्रिया ध्यान योग: यह ध्यान की विभिन्न पद्धतियों से मन को वश में करने, अवचेतन मन की शुद्धि, एकाग्रता का विकास, मानसिक स्पष्टता एवं दूरदर्शिता, बौधिक, सहज ज्ञान तथा सृजनात्मक क्षमताओं की वृद्धि और ईश्वर के साथ समागम अर्थात समाधि एवं आत्म-ज्ञान को क्रमशः प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है |
क्रिया मंत्र योग: सूक्ष्म ध्वनि के मौन मानसिक जप से सहज ज्ञान, बुद्धि एवं चक्र जागृत होते हैं | मंत्र मन में निरंतर चलते हुए कोलाहल का स्थान ले लेता है एवं अथाशक्ति संचय को आसान बनाता है | मंत्र के जप से मन की अवचेतन प्रवृत्तियों की शुद्धि होती है |
क्रिया भक्ति योग: आत्मा की ईश्वर प्राप्ति की अभीप्सा को उर्वरित करता है | इसमें मंत्रोच्चार, कीर्तन, पूजा, यज्ञ एवं तीर्थ यात्रा के साथ-साथ निष्काम सेवा सम्मिलित है | इनसे अपेक्षारहित प्रेम एवं आनंद की अनुभूति होती है | धीरे-धीरे साधक के सभी कार्य मधुर एवं प्रेममय हो जाते हैं और उसे सब में अपने प्रियतम का दर्शन होता है |
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