Tuesday, October 29, 2013

"क्रिया योग की उपयोगिता"

बाबाजी का क्रिया योग दीक्षा शिविर में क्रमशः किया जाता है | व्यक्ति के सर्वांगीन उन्नति के लिये क्रिया योग के विभिन्न तकनीकों की शिक्षा क्रमबद्ध तरीके से दी जाती है | कई प्रकार के इन तकनीकों के निष्ठापूर्वक अभ्यास से साधक में एक अमूल परिवर्तन आता है | इनसे मिलने वाले अनेक लाभों में हैं रोग मुक्ति और स्फूर्ति, भावनात्मक संतुलन, मानसिक शांति, तीक्ष्ण एकाग्रता, अन्तःप्रेरणा, ज्ञान एवं आध्यात्मिक आत्म-साक्षात्कार | इन क्रियाओं के दैनिक अभ्यास से अपार बल, स्थैर्य और शांति की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही साधक उद्द्यमी एवं भविष्यद्रष्टा भी बनता है | यह विच्छिन्नता और जड़ता दोनों ही को दूर कर मन और शरीर में संतुलन एवं शांति लाता है | शरीर, मन और आत्मा का कायाकल्प करने के इच्छुक सभी के लिये ये उपयुक्त है | यह उन सब के लिये है जो अपनी आत्मा से अंतरंग होने के लिये प्रयत्नशील हैं | और यह उन सभी लोगों के लिये भी है जो येसुमसीह के बताये गए “स्वर्ग के वैभव” को पृथ्वी पर ही पा लेने को तत्पर हैं | यह उन सब के लिये है जो अपने जीवन को हर्षोउल्लास से भरना चाहते हैं और उसे अपने सम्बन्ध में आने वालों के साथ में बाँटना चाहते हैं | ये सबों के लिये सामान प्रभावशाली है चाहे वो स्त्री हो या पुरुष, चाहे बालक हों या वृद्ध, कोई पूर्वानुभव हो या ना हो | इसके अभ्यास के लिये जाति, धर्मं और भाषा का कोई भेद नहीं है |,

क्रिया योग के अनुसार जीवन अपने अनुकूल समय पर एक साथ घटती हुई अनेकों घटनाओं की श्रृंखला है | इनमे से कोई घटना सुखद होती है और कोई दुखद | क्रिया योग में सिखाए गए आसन, प्राणायाम, मंत्र और ध्यान के अभ्यास से साधक की ऊर्जा और सजगता प्रखर होती हैं और इसी कारण साधक हरेक परिस्थिति में कुछ सीखने का और विकास का अवसर देखता है |

क्रिया योग भौतिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक प्रत्येक स्तर पर की गयी साधना है जो साधक को उसके सच्चे स्वरुप की याद दिलाती है | वह रूप जो शरीर और मन की गतिविधियों से अपने अहं की पहचान छोड़कर शुद्ध शाक्षी भाव में स्थित होता है | इस साधना से व्यक्ति अपना जीवन अपने इच्छानुसार बनाता है | आत्मनियंत्रण के बढ़ने के साथ साथ कर्ता भाव को त्याग कर जीवन के हर रूप का आनंद लेता है | क्रिया योग से ईश्वर का निरंतर सान्निध्य पाकर साधक आस्था, विनय एवं भक्ति से परिपूर्ण होता है | वह ईश्वर को ही भजता है, ईश्वर का ध्यान करता है, ईश्वर से किसी प्रिय सखा की तरह बातंय करता है और ईश्वर के वचन भी सुन पाता है |

क्रिया योग से मानसिक स्पष्टता और एकनिष्ठता पाकर साधक आसानी से न सिर्फ अपने लिये बल्कि दूसरों के लिये भी सही और श्रेयस मार्ग पा जाता है | शुद्ध दृष्टि और प्रखर बुद्धि से युक्त यह साधक अपनी चेतना का विस्तार कर हर तरह के कार्य अनायास ही संपन्न कर पाता है | अपनी उपलब्धियों का श्रेय वह स्वयं नहीं लेता और सबकुछ करने वाले महान कर्ता, ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहता है |

क्रिया योग के तकनीक हमारी अन्तःप्रज्ञा और रोग निवारण की शक्ति को सुदृढ़ करते हैं | हमारी प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत कर यह चुस्ती, फूर्ती, उत्तम स्वास्थ्य, सबल स्नायु तंत्र और शक्ति के साथ हमें सहज और शांत व्यक्तित्व प्रदान करता है |

शरीर और मन और आत्मा के बीच तारतम्य स्थापित कर क्रिया योग हमारी कुण्डलिनी में निहित दिव्य चेतना एवं शक्ति को जाग्रत करता है | हम कैसा जीवन जीते हैं वह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी चेतना किस स्तर तक पहुँची है | अस्तित्व के नए आयामों के द्वार खोलने के लिये अपनी आध्यात्मिक चेतना का विकास करना अत्यंत आवश्यक है | इसके बाद ही हम उस चेतना को अपने जीवन के गतिविधियों से जोड़ कर अपने इर्द-गिर्द सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं |  
::जय गुरु जय::


Monday, October 28, 2013

"क्रिया योग की उत्पत्ति"

::::जय गुरु जय::::

इस परम्परा का प्रारंभ शिव योग के पारंगत सिद्ध योगियों ने किया | सिद्ध अगस्त्य और सिद्ध बोगनाथ की शिक्षाओं को संश्लेषित कर क्रिया बाबाजी नागराज ने क्रिया योग के वर्तमान रूप का गठन किया | हिमालय पर्वत पर स्थित बद्रीनाथ में सन् 1954 और 1955 में बाबाजी ने महान योगी एस. ए. ए. रमय्या को इस तकनीक की दीक्षा दी |

1983 में योगी रमय्या ने अपने शिष्य मार्शल गोविन्दन को 144 क्रियाओं के अधिकृत शिक्षक बनने से पहले उन्हें अनेक कठोर नियमों का पालन करने को कहा | मार्शल गोविन्दन पिछले 12 वर्षों से क्रिया योग का अनवरत अभ्यास कर रहे थे | प्रति सप्ताह 56 घंटे अभ्यास करने के अतिरिक्त उन्होंने 1981 में श्री लंका के समुद्र तट पर एक वर्ष मौन तपस्या की थी | गुरु के दिये हुए अतिरिक्त शर्तों को पूरा करने में गोविन्दन जी को तीन वर्ष और लगे | इतना होने पर योगियार ने उन्हें प्रतीक्षा करते रहने को कहा | योगियार अक्सर कहते थे कि शिष्य को गुरु अर्थात बाबाजी के चरणों तक पंहुचा देना भर ही उनका काम था | 1988 में क्रिस्मस की पूर्व संध्या पर गहन आध्यात्मिक अनुभूति के दौरान गोविन्दन जी को सन्देश मिला कि वो अपने शिक्षक के आश्रम और उनका संगठन छोड़ कर लोगों को क्रिया योग में दीक्षा देना शुरू करें |


इसके बाद मार्शल गोविन्दन के जीवन की दिशा गुरु की प्रेरणा से प्रकाशमान हुई | 1989 से उनका जीवन इस नयी दिशा में अग्रसर हुआ | लोगों तक इस शिक्षा को लाने के द्वार खुलते गए, मार्ग प्रशस्त होता गया | इस कार्य में अन्तःप्रज्ञा और अंतर-दृष्टि के माध्यम से गुरु का मार्गदर्शन निरंतर मिलता रहा | गोविन्दन जी ने मोंट्रियल में ही साप्ताहांत में क्रिया योग सिखलाना शुरू किया | क्रिया योग पर उनकी पहली पुस्तक का प्रकाशन 1991 में हुआ और इसके बाद वे सारी दुनिया में कई जगहों पर साप्ताहांत दीक्षा शिविर आयोजित करने लगे | तब से गुरु के प्रकाश से ज्यादा से ज्यादा लोगों को आलोकित करना ही उन्हें आनंदित करता है | अब तक 20 से अधिक देशों में फैले हुए 10,000 से ज्यादा लोग आध्यात्म कि इस बहुमूल्य वैज्ञानिक प्रणाली से जुड़ चुके हैं | उन्होंने क्रिया योग के 16 शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया है ।              
                                                                         ::::जय गुरु जय::::

Sunday, October 27, 2013

"क्रिया योग" - बाबाजी के क्रिया योग

क्रिया योग सजग कर्म है | यह अपनी वास्तविकता पहचानने का एवं आत्म-ज्ञान प्राप्ति का मार्ग है | बाबाजी के क्रिया योग में न केवल योग के सभी अभ्यास जैसे आसन, प्राणायाम, ध्यान तथा मंत्र में पूर्ण "सजगता" सम्मिलित है बल्कि अपने वचन, विचार, स्वप्न और इच्छाओं के प्रति सतत सजगता भी सन्निहित है | इस साधना में हमें अतिचैतन्य बनाने की अपार क्षमता है | बस अपने शारीर मन एवं समग्र चेतना से अपनी आत्मा की पूर्ण शुद्धि की कामना से जुड़ने की तत्परता चाहिए | बाबाजी का क्रिया योग आत्म-साक्षात्कार एवं अपने पांचों शारीर (भौतिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक ) के कायाकल्प हेतू 144 क्रियाओं का संकलन है |

क्रिया हठ योग का प्रथम लक्ष्य है शरीर एवं मन की गहन विश्राम की स्थिति | आसन शरीर को आधि-व्याधि से मुक्त करते हैं | विविध आसनों से शरीर हल्का, लचीला एवं स्फूर्तिवान बनता है | इन 18 आसनों का अभ्यास मेरुदण्ड में स्थित ऊर्जा चक्रों, कुण्डलिनी शक्ति एवं चेतना को जाग्रत करता है |

क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम स्नायुतंत्र के प्रमुख सूक्ष्म भागों पर सीधा प्रभाव डालता है | प्राणायाम का प्रथम लक्ष्य है स्नायुतंत्र को परिशुद्ध कर प्राणशक्ति को सभी चक्रों में अनवरुद्ध प्रवाहित करना | अंतिम लक्ष्य है सुषुम्ना नाङी को जाग्रत कर कुण्डलिनी को उसमे ऊर्ध्वगामी करना |

बाबाजी के क्रिया ध्यान योग की मांग है अपनी अन्तःचेतना में उपलब्ध यथार्थ बोध को अपनी जाग्रत अवस्था में लाकर उसे और भी प्रभावकारी बनाना | हमारे जीवन का स्वरुप इस बात पर निर्भर करता है की हमारी चेतना किस स्तर ( सोपान) पर है | इसीलिए ध्यान के द्वारा विचारों को रोक कर शून्य की अवस्था में डूबने की जगह, ध्यान की हमारी क्रियाएँ अंतर-धारणा जैसी मानसिक शक्तियों को सुदृढ़ कर उन्हें जीवनोपयोगी सहजज्ञान एवं अंतःप्रेरणा के स्त्रोत में विकसित करती है | ध्यान की इन क्रियाओं से एकाग्रता की क्षमता विकसित होकर हमारी समग्र चेतना को आत्मा की ओर उन्मुख करती है |

क्रिया मंत्र योग सत्व गुण को जाग्रत करने वाले सशक्त बीज मन्त्रों का मौन जप है | यह क्रिया साधक कि चेतना को इश्वरोंन्मुख कर उसे दैवी शक्ति एवं ईश्वर कृपा के प्रवाह से जोड़ती है |

Saturday, October 26, 2013

"गुरुमंत्र"


   प्रणव, यह प्राणों में व्याप्त होने वाला ब्रह्माण्ड का अदिनाद है |
क्रिया    अपने सभी कर्मों को अपनी चेतना की विषय वस्तु मान कर सजगतापूर्वक किया गया कर्म ही क्रिया है | यह क्रिया योगियों के लिए साधन भी है और साध्य भी |
बाबाजी    क्रिया योग परम्परा के गुरु हैं जिन्होंने इस प्राचीन शिक्षा का संश्लेषण कर इसे आधुनिक काल में प्रवर्तित किया | परमहंस योगानन्द की पुस्तक "योगी कथामृत" में इन्हीं बाबाजी का उल्लेख है |
नमः    अभिवादन एवं आवाहन |
  अन्तःकरण में गुंजायमान आदिनाद |

ॐ क्रिया बाबाजी नमः ॐ, यह गुरुमंत्र हिमालय के सिद्ध क्रिया बाबाजी नागराज से तारतम्य स्थापित कर हमें उनकी कृपा से जोड़ने की शक्ति रखता है |, इस मंत्र के माध्यम से वह अपने भक्तों को दर्शन देते हैं | इस मंत्र के जप से सहस्रार चक्र में अवस्थित परम चेतना अर्थात अन्तःगुरु से सान्निध्य हो जाता है | इस मंत्र में चैतन्य ऊर्जा है | इस मंत्र में शक्ति है क्योंकि मंत्र से ही गुरु अपनी चैतन्य ऊर्जा अपने शिष्य में प्रविष्ट करते हैं | मंत्र के मूल में गुरु के शब्द हैं और मंत्र तो स्वयं साक्षात् गुरु हैं |

‼ॐ नमः ॐ ‼  -----   ‼ॐ क्रिया बाबाजी नमः ॐ‼    -----    ‼जय गुरु जय‼
                                     

Friday, October 25, 2013

‼::क्रिया योग की उपयोगिता::‼

बाबाजी का क्रिया योग दीक्षा शिविर में क्रमशः किया जाता है | व्यक्ति के सर्वांगीन उन्नति के लिये क्रिया योग के विभिन्न तकनीकों की शिक्षा क्रमबद्ध तरीके से दी जाती है | कई प्रकार के इन तकनीकों के निष्ठापूर्वक अभ्यास से साधक में एक अमूल परिवर्तन आता है | इनसे मिलने वाले अनेक लाभों में हैं रोग मुक्ति और स्फूर्ति, भावनात्मक संतुलन, मानसिक शांति, तीक्ष्ण एकाग्रता, अन्तःप्रेरणा, ज्ञान एवं आध्यात्मिक आत्म-साक्षात्कार | इन क्रियाओं के दैनिक अभ्यास से अपार बल, स्थैर्य और शांति की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही साधक उद्द्यमी एवं भविष्यद्रष्टा भी बनता है | यह विच्छिन्नता और जड़ता दोनों ही को दूर कर मन और शरीर में संतुलन एवं शांति लाता है | शरीर, मन और आत्मा का कायाकल्प करने के इच्छुक सभी के लिये ये उपयुक्त है | यह उन सब के लिये है जो अपनी आत्मा से अंतरंग होने के लिये प्रयत्नशील हैं | और यह उन सभी लोगों के लिये भी है जो येसुमसीह के बताये गए “स्वर्ग के वैभव” को पृथ्वी पर ही पा लेने को तत्पर हैं | यह उन सब के लिये है जो अपने जीवन को हर्षोउल्लास से भरना चाहते हैं और उसे अपने सम्बन्ध में आने वालों के साथ में बाँटना चाहते हैं | ये सबों के लिये सामान प्रभावशाली है चाहे वो स्त्री हो या पुरुष, चाहे बालक हों या वृद्ध, कोई पूर्वानुभव हो या ना हो | इसके अभ्यास के लिये जाति, धर्मं और भाषा का कोई भेद नहीं है |

क्रिया योग के अनुसार जीवन अपने अनुकूल समय पर एक साथ घटती हुई अनेकों घटनाओं की श्रृंखला है | इनमे से कोई घटना सुखद होती है और कोई दुखद | क्रिया योग में सिखाए गए आसन, प्राणायाम, मंत्र और ध्यान के अभ्यास से साधक की ऊर्जा और सजगता प्रखर होती हैं और इसी कारण साधक हरेक परिस्थिति में कुछ सीखने का और विकास का अवसर देखता है |

क्रिया योग भौतिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक प्रत्येक स्तर पर की गयी साधना है जो साधक को उसके सच्चे स्वरुप की याद दिलाती है | वह रूप जो शरीर और मन की गतिविधियों से अपने अहं की पहचान छोड़कर शुद्ध शाक्षी भाव में स्थित होता है | इस साधना से व्यक्ति अपना जीवन अपने इच्छानुसार बनाता है | आत्मनियंत्रण के बढ़ने के साथ साथ कर्ता भाव को त्याग कर जीवन के हर रूप का आनंद लेता है | क्रिया योग से ईश्वर का निरंतर सान्निध्य पाकर साधक आस्था, विनय एवं भक्ति से परिपूर्ण होता है | वह ईश्वर को ही भजता है, ईश्वर का ध्यान करता है, ईश्वर से किसी प्रिय सखा की तरह बातंय करता है और ईश्वर के वचन भी सुन पाता है |

क्रिया योग से मानसिक स्पष्टता और एकनिष्ठता पाकर साधक आसानी से न सिर्फ अपने लिये बल्कि दूसरों के लिये भी सही और श्रेयस मार्ग पा जाता है | शुद्ध दृष्टि और प्रखर बुद्धि से युक्त यह साधक अपनी चेतना का विस्तार कर हर तरह के कार्य अनायास ही संपन्न कर पाता है | अपनी उपलब्धियों का श्रेय वह स्वयं नहीं लेता और सबकुछ करने वाले महान कर्ता, ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहता है |

क्रिया योग के तकनीक हमारी अन्तःप्रज्ञा और रोग निवारण की शक्ति को सुदृढ़ करते हैं | हमारी प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत कर यह चुस्ती, फूर्ती, उत्तम स्वास्थ्य, सबल स्नायु तंत्र और शक्ति के साथ हमें सहज और शांत व्यक्तित्व प्रदान करता है |

शरीर और मन और आत्मा के बीच तारतम्य स्थापित कर क्रिया योग हमारी कुण्डलिनी में निहित दिव्य चेतना एवं शक्ति को जाग्रत करता है | हम कैसा जीवन जीते हैं वह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी चेतना किस स्तर तक पहुँची है | अस्तित्व के नए आयामों के द्वार खोलने के लिये अपनी आध्यात्मिक चेतना का विकास करना अत्यंत आवश्यक है | इसके बाद ही हम उस चेतना को अपने जीवन के गतिविधियों से जोड़ कर अपने इर्द-गिर्द सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं |
                                                      ‼::जय गुरु जय::‼


Thursday, October 24, 2013

'श्रद्धा' ‼जय गुरु जय‼

"Rise up, prostrate, surrender, embrace, wonder;

Appeal in all the ways to the Holy feet of the Lord.

That brings the benefits of this birth;

Hold Him with reverence; He responds in turn."

Wednesday, October 23, 2013

"प्रसन्नता" ‼जय गुरु जय‼

Every person has to take responsibility for their own happiness , and that has to conduct which pleases them . If you always try to please everyone , but then neither will it be able to destroy your joy and happiness, will get It is true that you want to keep everyone happy , but happiness is more important than the happiness of others, you can not assume otherwise would not be happy and others will not be too happy !           ‼जय गुरु जय‼

"ईश्वर" ‼जय गुरु जय ‼

ना तो किसी को धोखा दीजिए ना ही किसी के धोखे में आइए।अपने स्वभाव और ईच्छा के विरुद्ध मत जाइए।जो ऐसा ढ़ोग करते हों कि केवल वे ही परमात्मा की सेवा कर रहे हैं अन्य धर्म नहीं उनके प्रलोभन में आकर दूसरे धार्मिक संप्रदाय में मत जाइए।

बहुत से लोग कहते हैं कि वो ईश्वर और उसके विधान में विश्वास करते हैं परन्तु यदि आप कुछ पाना या जिन्दगी में कुछ करना चाहते हैं तो आपको खुद कदम उठाना पड़ेगा! बैठे रहने और विश्वास कर लेने से कुछ नहीं होगा| विश्वास छोड़ो, उठो और असल दुनिया में हाथ पैर चलाओ!

 Believe it will not take sitting | Leave belief, move your feet up and hands in the real world!                                     ‼जय गुरु जय ‼

Monday, October 21, 2013

क्रिया योग क्या है ?

बाबाजी का क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है | प्राचीन सिद्ध परम्परा के 18 सिद्धों की शिक्षा का संश्लेषण कर भारत के एक महान विभूति बाबाजी नागराज ने इस प्रणाली को पुनर्जीवित किया | इसमें योग के विभिन्न क्रियाओं को 5 भागों में बांटा गया है |

क्रिया हठ योग: इसमें विश्राम के आसन, बंध और मुद्रा सम्मिलित हैं | इनसे नाङी एवं चक्र जागरण के साथ-साथ उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है | बाबाजी ने 18 आसनों की एक श्रृंखला तैयार की है जिन्हें दो आसन के युगल में करना सिखाया जाता है | अपने शारीर की देख-भाल मात्र शारीर के लिए नहीं बल्कि इसे ईश्वर     वाहन अथवा मंदिर समझ कर किया जाता है |


क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम: यह व्यक्ति की सुप्त चेतना एवं शक्ति को जगा कर उसे मेरुदंड के मूल से शीर्ष तक स्थित 7 प्रमुख चक्रों में प्रवाहित करने की शक्तिशाली स्व्शन क्रिया है | यह 7 चक्रों से सम्बद्ध क्षमताओं को जागृत कर अस्तित्व के पांचों कोषों को शक्तिपुंज में परिणत करते है |


क्रिया ध्यान योग: यह ध्यान की विभिन्न पद्धतियों से मन को वश में करने, अवचेतन मन की शुद्धि, एकाग्रता का विकास, मानसिक स्पष्टता एवं दूरदर्शिता, बौधिक, सहज ज्ञान तथा सृजनात्मक क्षमताओं की वृद्धि और ईश्वर के साथ समागम अर्थात समाधि एवं आत्म-ज्ञान को क्रमशः प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है |


क्रिया मंत्र योग: सूक्ष्म ध्वनि के मौन मानसिक जप से सहज ज्ञान, बुद्धि एवं चक्र जागृत होते हैं | मंत्र मन में निरंतर चलते हुए कोलाहल का स्थान ले लेता है एवं अथाशक्ति संचय को आसान बनाता है | मंत्र के जप से मन की अवचेतन प्रवृत्तियों की शुद्धि होती है |

क्रिया भक्ति योग: आत्मा की ईश्वर प्राप्ति की अभीप्सा को उर्वरित करता है | इसमें मंत्रोच्चार, कीर्तन, पूजा, यज्ञ एवं तीर्थ यात्रा के साथ-साथ निष्काम सेवा सम्मिलित है | इनसे अपेक्षारहित प्रेम एवं आनंद की अनुभूति होती है | धीरे-धीरे साधक के सभी कार्य मधुर एवं प्रेममय हो जाते हैं और उसे सब में अपने प्रियतम का दर्शन होता है |

Saturday, October 19, 2013

Paramahansa Yogananda Ji Mahraaj

People try to find happiness in drink, sex, and money, but the pages of history are filled with tales of their 

disillusionment. The time I 


have spent in prayer has made my life unimaginably fruitful. A thousand bottles of wine could not produce the joy 

it has given me. In 


that joy is the conscious guidance of God's wisdom. When you are attuned with Him in this way, even though you 

unwittingly do wrong 


it will be righted by the Lord's omniscient direction; if you make a poor judgement it will be corrected by Him. 

Paramahansa Yogananda

Wednesday, October 16, 2013

::‼Om Gurú Ji ♥ PremaAvatar ♥‼::

You can go your own way now, breaking away from the expectations you carry from others about how you should live your life.                       

::‼Om Gurú Ji ♥ PremaAvatar ♥‼::                                                     ::‼Om Gurú Ji ♥ PremaAvatar ♥‼::



Tuesday, October 8, 2013

Sri Sri Paramahansa Yogananda

Though you must remain in the world, be not of the world. Real yogis can talk and mingle with people, but all the while their minds are rapt in God.                         ::श्री श्री परमहंस योगानंद::





Monday, October 7, 2013

"Sri Sri Swami Sri Yukteswar Giri"

Do not confuse understanding with a larger vocabulary. Sacred writings are beneficial in stimulating desire for inward realization, if one stanza at a time is slowly assimilated. Otherwise, continual intellectual study may result in vanity, false satisfaction, and undigested knowledge.           ::YSS KRIYAYOG::

Sunday, October 6, 2013

Sri Sri Paramahansa Yogananda

The material and the spiritual are but two parts of one universe and one truth. By overstressing one part or the other, man fails to achieve the balance necessary for harmonious development.... Practise the art of living in this world without losing your inner peace of mind. Follow the path of balance to reach the inner wondrous garden of Self-realization.

                                                                                                     Sri Sri Paramahansa Yogananda         Sri Sri Paramahansa Yogananda
- Sri Sri ParamaSri Sri Paramahansa Yoganandahansa Yogananda
in a "Para-gram"

Saturday, October 5, 2013

JAI SHRI MAHAVTAR BABAJI

_/\_ ॐ क्रिया बाबाजी नमः ॐ _/\_

_/\_ Om Kriya Babaji Namah Om _/\_

Sri Sri Paramahansa Yogananda

I will be calmly active, actively calm. I will not become lazy and mentally ossified. Nor will I be overactive, able to earn money but unable to enjoy life. I will meditate regularly to maintain true balance.
- Sri Sri Paramahansa Yogananda
"Metaphysical Meditations"     ::JAI GURU JAI::